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कोई भी कार्य प्रारंभ करने से पूर्व एक बात मन में बैठा लेनी चाहिए----"हम इसे अंत तक, सफलता मिल जाने तक पालन करेंगे।" मनुष्य जीवन में दृढ़ता और अडिगता की अनिवार्यता आवश्यकता होती है। अपने जीवन को किसी और पर आधारित रखकर स्वयं उसे साधना, संभालना तथा बहुत देर तक प्रतीक्षा करने में अधिक आनंद देखना है। साधना एक प्रकार का आनंद है; जिसे थोड़ी देर भोगने से तृप्ति नहीं होती, वरन् चिरकाल तक उस रस को लूटा जाता है। भार की तरह ढोने के लिए साधना नहीं; वह तो पुरुषार्थ का आनंद लेने वाली होती है।


अधिक बड़े संघर्ष पैदा न हो; इसके लिए यह भी आवश्यक है कि आपका साधन छोटा हो। साईकिल, साईकिल से टकराएंगी तो क्षति कम होगी; रेल, रेल से टकराएंगी तो बड़ी हानी होगी। धीमी गति में स्थिरता और स्थायित्व होता है।

साधनासिद्धि और लक्ष्यसिद्धि के ये शाश्वत नियम है। इन्हें कोई साधारण भले ही समझे, पर इनकी वास्तविकता में राई-रत्ती भी गुंजाइश नहीं। लक्ष्य चाहे छोटा हो, चाहे बड़ा; स्वर्ग और मुक्ति की कामना हो; यश, धन अथवा कीर्ति की; मनुष्य को संतुलन रखकर मंद गति से, लगन के साथ धैर्यपूर्वक साधना करनी पड़ती है।


संपादक: राजकुमार देशमुख

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